Sunday, September 26, 2021

नालंदा विश्वविद्यालय

 


संक्षिप्त विवरण
नालंदा इतिहास की कक्षाओं के लिये एक जाना पहचाना नाम है, परन्तु यह बड़े दुर्भाग्य कि बात है कि जब भी इसकी चर्चा होती है, तो इसके महत्व का वर्णन अतीत की गहराईयों में होता है, और इसके साथ ही हमारी भारतीय शिक्षा की ऊच्चाईयाँ भूतकाल में गोते लगाने लगती है। हम नालंदा के साथ-साथ बौद्ध धर्म के विश्मृत इतिहास के बारे में सोचने को मजबुर हो जाते हैं।
नालंदाबिहार की प्राचीन विश्वविद्यालय शहर, का इतिहास हमें छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बुद्ध और महावीर के दिनों में वापस ले जाता है। "नालंदा" शब्द का क्या मतलब है,  इसके कई संस्करण रहे हैं। नालम को कमल और दा को देना के अर्थ में प्रयोग किया जाता होगा। जैसे कमल ज्ञान के एक प्रतीकात्मक रूप का प्रतिनिधित्व करता है, वैसे ही नालंदा शब्द का मतलब है ज्ञान का दाता माना जाता है। पुरातन साहित्यों के अध्ययनों से पता का चलता है कि नालंदा विश्वविद्यालय गुप्त काल (पांचवीं शताब्दी ई.) के दौरान शुरू किया गया था । उनमें यह भी प्रलेखित किया गया है कि बुद्ध अक्सर नालंदा में रुका करते थे। यह विश्वविद्यालय उस समय के शुरूआती महान विश्वविद्यालयों में से एक था जो आज सिर्फ एक खंडहर के रूप निहित है। लेकिन अभी भी सब कुछ खोया नहीं है। यह फीनिक्स की तरह पुन विकसित हो सकती है।
 
मुख्य आलेख
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 427 के लगभग में उत्तर - पूर्वी भारत जो उस समय मगध के नाम से मशहुर था (आज के बिहार राज्य का नालंदा जिला), में किया गया थाजो आज नेपाल के दक्षिणी सीमा से बहुत दूर नहीं है । यह संस्थान सन् 1197 तक विद्यमान रहा और अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से पुरे संसार में जगमगाता रहा, साथ ही पुरी दुनियाँ को भी प्रकाशमान् करता रहा । नालंदा, इतिहास में वर्णित महान पैराणिक विश्वविद्यालयों में से एक था। इसे बौद्ध अध्ययन के लिए समर्पित किया गया थालेकिन यहाँ ललित कलाचिकित्सागणितखगोल विज्ञानराजनीति के अलावा युद्ध की कला में भी छात्रों को प्रशिक्षित किया जाता था।
यह, आठ अलग-अलग परीसरों, 10 मंदिरों, ध्यान के लिये सभागारोंकक्षाओंझीलों और पार्कों को समाहित करता, वास्तुशिल्प और पर्यावरण का एक बेजोड़ संगम था। यहाँ नौ मंजिला एक पुस्तकालय भी था जहां भिक्षुओं सावधानी से किताबें और लेखों का प्रलेख तैयार करते थे ताकि सभी विद्वानों के पास उनका अपना अलग - अलग संग्रह हो सके।
संभवत, एक शैक्षिक संस्थान के तौर पर यह प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था, जहाँ 10,000 छात्रों को शयनगृह तथा 2,000 प्राध्यापकों (प्रोफेसरों) के लिये आवास उपलब्ध थे। नालंदा अपने समय का सबसे बड़ा वैश्विक विश्वविद्यालय था, जिसके फलस्वरूप(अपने चरम काल में) यह कोरियाजापानचीनतिब्बतइंडोनेशियाफारस और तुर्की से विभिन्न विषयों का अध्ययन के लिये, विद्यार्थियों और विद्वानों को आकर्षित करने में सफल रहा था। यह चीन के बाहर अकेला शैक्षिक संस्थान है जहां कोइ चीनी 17 वीं सदी से पहले अध्ययन के लिए गया था।
ऐसा माना जाता है कि कठोर प्रवेश परीक्षा आयोजित करने वाला यह पहला संस्थान था। इसके पास विश्व स्तर के प्राध्यापक (प्रोफेसरों) भी थेजिन्होंने गणितीय प्रमेयों और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में क्रान्तिकारी काम किया था। इसने कई भाषाओं में धार्मिक ग्रंथों के दुभाषियों और अनुवादकों को भी उत्पन्न किया।
एक शैक्षिक संस्थान के रूप में पुरानी नालंदा पूरी तरह से सीखने-सीखाने के लिए समर्पित था। वास्तव में, यह शैक्षिक उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्ध थाक्योंकि यह बहुत हद तक उस उत्कृष्टता को प्राप्त करने और उसे बनाए रखने में सफल रहा था जिसके कारण नालंदा विदेशी छात्रों को - चीनजापानकोरिया और अन्य जगहों से आकर्षित किया करता था। इसकी स्थापना बौद्ध संस्था के तौर पर की गयी थीलेकिन नालंदा के शिक्षण और अनुसंधान कार्य बौद्ध अध्ययन तक ही सीमित नहीं थे। वास्तव में, धर्मनिरपेक्ष विषयों, जैसे की स्वास्थ्य देखभालभाषा विज्ञानखगोल विज्ञान की पेशकश के लिए भी इसे अच्छी ख्याति प्राप्त थी। नालंदा को हिंदू राजाओं (जैसे गुप्त के रूप में) के साथ साथ बौद्ध राजाओं (जैसे बंगाल के पाल के रूप में) से भी अच्छी तरह से संरक्षण प्राप्त था।
पतन
यह मात्र एक संयोग ही था कि जब पश्चिम के कुछ बड़े विश्वविद्यालयों का इस दुनिया में पादुर्भाव हो रहा था, नालंदा चिर निंद्रा में सोने की तैयारी कर रहा था। भारत में बौद्ध धर्म के प्रति उत्साह का तेजी से ह्रास, भारतीय सम्राटों द्वारा प्राप्त होने वाले वित्तीय सहायता में लगातार गिरावट, साथ ही विश्वविद्यालय के अधिकारियों के बीच बढता भ्रष्टाचार, विश्वविद्यालय का पतन के महत्वपूर्ण कारण थे । अफगानिस्तान से आये मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा विश्वविद्यालय के भवनों को जलाया जाना और वहाँ कार्यरत बौद्ध भिक्षुओं और छात्रों की हत्या ने इसके ताबूत की आखिरी किल की तरह कार्य किया और इसके साथ ही यह ऐतहासीक विश्वविद्यालय इतिहास के पन्नों में विलीन हो गया।

संर्दभ REFERENCES
1.     Jeffrey Garten, "Really Old School," The New York Times, December 9, 2006.
2.     Amartya Sen, "Passage to China," The New York Review of Books, December 2, 2005.

3.     Andrew Buncombe, “Oldest University on earth is reborn after 800 years” The Independent, August 4, 2010.

4.     Priscilla Jebaraj, “Nalanda University will take time to grow: Amartya Sen”, The Hindu, August 4, 2010.

5.     S. D. Muni, “Nalanda: a soft power project”, The Hindu, August 30, 2010.

6.     Aarti Dhar, “Road map for Nalanda University discussed”, The Hindu, February 21, 2011.

7.     MURALI N.KRISHNASWAMY, “Ancient seat of learning”, The Hindu, September 13, 2011.

8.     www.wikipedia.com

Saturday, September 18, 2021

नालंदा विश्वविद्यालय - भारत का गौरव

नालंदा इतिहास की कक्षाओं के लिये एक जाना पहचाना नाम है, परन्तु यह बड़े दुर्भाग्य कि बात है कि जब भी इसकी चर्चा होती है, तो इसके महत्व का वर्णन अतीत की गहराईयों में होता है, और इसके साथ ही हमारी भारतीय शिक्षा की ऊच्चाईयाँ भूतकाल में गोते लगाने लगती है। हम नालंदा के साथ-साथ बौद्ध धर्म के विश्मृत इतिहास के बारे में सोचने को मजबुर हो जाते हैं।

नालंदाबिहार की प्राचीन विश्वविद्यालय शहर, का इतिहास हमें छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बुद्ध और महावीर के दिनों में वापस ले जाता है। "नालंदा" शब्द का क्या मतलब है,  इसके कई संस्करण रहे हैं। नालम को कमल और दा को देना के अर्थ में प्रयोग किया जाता होगा। जैसे कमल ज्ञान के एक प्रतीकात्मक रूप का प्रतिनिधित्व करता है, वैसे ही नालंदा शब्द का मतलब है ज्ञान का दाता माना जाता है। 

पुरातन साहित्यों के अध्ययनों से पता का चलता है कि नालंदा विश्वविद्यालय गुप्त काल (पांचवीं शताब्दी ई.) के दौरान शुरू किया गया था । उनमें यह भी प्रलेखित किया गया है कि बुद्ध अक्सर नालंदा में रुका करते थे। यह विश्वविद्यालय उस समय के शुरूआती महान विश्वविद्यालयों में से एक था जो आज सिर्फ एक खंडहर के रूप निहित है। लेकिन अभी भी सब कुछ खोया नहीं है। इय फीनिक्स की तरह पुन विकसित हो सकती है।


तुतनखामुन – ताबूत से प्रसिद्धी

तुतनखामुन प्राचीन मिस्र का एक ऐसा शख्स था जिसे जीते जी उतनी प्रसिद्धी हासिल नहीं हुयी जितनी की मरने के बाद हुई। तुतनखामुन जिसे लोग राजा तुत के नाम से भी जानते है, १८ वें राजवंश का प्राचीन इजिप्टियन शासक (Egyptian pharaoh) था। यह अखेनातेन का पुत्र था। इसने ९ बर्ष की छोटी उम्र में मिस्र की बागडोर संभाली और  लगभग १० बर्षों तक शासन किया। राजा बनते ही इसने अन्खेसेनामुन से शादी की। अपने इस छोटे से शासनकाल में राजा तुत ने बहुत ही ज्यादा ख्याति अर्जित की, परन्तु आज की दुनिया लम्बे समय तक इस राजा से अनभिज्ञ थी। 



राजा तुत के शासन के दौरान, इनके शक्तिशाली सलाहकारों ने मिस्र की पुरातन परंपरागत कला एवं धर्म को पुनः स्थापित किया, जिसे इनके पूर्ववर्ती शासक “अखेनटोन” द्वारा दरकिनार कर दिया गया था। इस राजा का शासनकाल बहुत छोटा था और यह मुख्यतः अपने बहुमूल्य रत्नों से सुशोभित ताबूत के कारण ही चर्चित हुआ जोकि १९२२ में खुदाई के दौरान लगभग अविकल (Intact) रूप में पाया गया। यद्धपि इस काल के कब्रों में मौजूद बहुमूल्य वस्तुओं के कारण हजार साल के राजाओं के घाटी के इतिहास में कितने ही प्राचीन कब्रों को तोड़ा गया और लूटा गया। राजा तुत के कब्र से अपार धन-संपदा प्राप्त हुई जिसमें रत्नजड़ित स्वर्ण आभूषणों, बहुमूल्य रत्नों के अलावा कई मूर्तियाँ, अनेकों रथ, बर्तन, हथियार इत्यादि अनेक वस्तुऐं शामिल थी। जब इस अनमोल खजाने को “तुतनखामुन का खजाना” नाम के एक विश्वस्तरीय प्रदर्शनी के रूप में आम लोगों के सामने रखा गया तो इसने जनमानस की चेतना में एक अमिट छाप छोड़ी और इस प्रकार इस राजा की प्रसिद्धी ने कितने ही महान ऐतिहासिक राजाओं को पीछे छोड़ दिया।

यह राजा अपने जीवन के १९ वें वर्ष में बिना उत्तराधिकारी की घोषणा किये ही अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गया। बाद में मिस्र की गद्दी ऐ (Ay) नामक शासक ने संभाला। इस दौरान राजा तुत के शव को जल्दबाजी में राजाओं की घाटी में एक छोटे से कब्र में दफना दिया गया। अर्मना काल के दूसरे राजाओं अखेनतोन, स्मेनखकोर और ऐ (Ay) की तरह ही तुतनखामुन का नाम भी बाद में पुराने राजाओं की सूची से मिटा दिया गया और इसके द्वारा निर्मित भव्य इमारतों, स्मारकों को उसके सेनापति होरेमहेब ने हड़प लिया जोकि कालांतर में वहाँ का राजा बन गया। हालाँकि राजा तुत के कब्र में छोटे-मोटे लूटपाट के निशान पाये गये हैं, परन्तु २० वें राजवंश (११९०-१०७५ BC) तक आते-२ उसके कब्र को भुला दिया गया था।

जब रामेस-६ के कब्र की खुदाई आरंभ हुई तो उस समय खुदाईकारों के रहने के लिये पत्थरों के अस्थायी कमरों का निर्माण किया गया जो अनजाने में ही राजा तुत के कब्र के प्रवेश द्वार के ठीक उपर था। यह कब्र उस समय तक पूर्णतया संरक्षित था जब तक कि अंग्रेज पुरातत्ववेता हावर्ड कार्टर ने राजाओं के घाटी की सुनियोजित छानबीन के दौरान सन् १९२२ में इस कब्र के स्थान की घोषणा की।

छोटे से कब्र के अन्दर राजा की ममी को तीन ताबूतों के परतदार संरचना के अन्दर रखा गया था, सबसे अन्दर वाला ताबूत ठोस सोने का बना हुआ था जबकि बाहरी दोनों ताबूत लकड़ी के थे जिनके ऊपर शुद्ध सोने की परतें चढ़ाई गयी थीं। राजा के मुख के ऊपर अद्भुत स्वर्ण प्रतिकृति का आवरण था और साथ ही ममी के ऊपर विभिन्न आवरणों में अनगिनत स्वर्ण आभूषण एवं कवच रखे गये थे।

कब्र के अन्य कमरे वस्त्र, असबाब, रथ, हथियार एवं अनगिनत कीमती समाग्रियों से भरी पड़ीं थी। १९६० से १९७० के बीच अत्यंत प्रसिद्ध “तुतनखामुन का खजाना” प्रदर्शनी को संपूर्ण विश्व में प्रर्दशित किया गया और इस प्रकार इस अल्पकालिक राजा ने दुनिया के इतिहास में अपना स्थान संरक्षित कर लिया। इनकी कीर्ति संसार के कोने-कोने तक फैल गयी। परन्तु यहाँ यह कहना आश्चर्यजनक नहीं होगा कि इस प्रसिद्धी में इस राजा का योगदान कम ही है जोकि संभवतः अपने लम्बे उम्र तक जीवनयापन और शासन करने वाले, इतिहासों में वर्णित पूर्वाधिकारियों एवं उतराधिकारियों से ज्यादा अच्छी तरह से जाना जाता है। आज के समय में यह खजाना कैरो (Cairo) के Egyptian संग्रहालय में रखा गया है।

Sunday, July 4, 2021

Tiladhak University - Another Jewel of Bihar

 Bihar, which is home to the remains of 4th century ancient Nalanda and 8th-century Vikramshila University got another gem in its basket as "Tiladhak University”, which is presumed to be older than Nalanda. Remains of this ancient university have been discovered in Bihar during excavation of a 45-foot high mound, at the Buddhist monastery site of Telhara about 33 km west of Nalanda University. This is the discovery of the remains of a third ancient university in the state.



Initially, it was prevalently known that Tiladhak ancient university was set up in the 5th century during the Gupta period. "Deeper excavation indicates that foundation of Tiladhak University was laid during Kushan period in first century AD and not Gupta period as prevalently known so far. This indicates that the Buddhist mahavihara found at the site might be more ancient than the mahavihara that exists at Nalanda and Vikramshila.

Remains of "Tiladhak" ancient university are spread in a big area and will take more time for full excavation - just like Nalanda where the excavation took years. Archeologists have found a huge floor, statues of bronze and stone, and over 100 seals there.

Telhara was visited by Chinese traveler Heuen Tsang in the 7th century A.D. and it was mentioned as "Teleadaka" in his account. However, according to Calcutta University’s S. Sanyal, who studied four monastery seals found during excavation, the mahavihara’s name is “Sri Prathamshipur mahaviharey bhikshu sanghas.”. Tsang has given a graphic account of a cluster of as many as seven Buddhist monasteries flourishing at "Teleadaka", also called "Tiladhak", at Telhara site, where about a thousand monks studied under the Mahayana school of Buddhism.

Friday, June 11, 2021

Review of book titled “Swift Horses Sharp Swords: Medieval Battles which Shook India”, written by Amit Agrawal

The book titled “Swift Horses Sharp Swords: Medieval Battles which Shook India”, written by Amit Agrawal presents history for layman readers. It’s a good researched book covering ancient India to the current timeline and gives an overview to understand basic concepts behind all the events. This book consists of nearly 55 chapters discussing the Vedic era, different Indic religions, the evolution of Islam, afterward effects due to Islamic invasion, and decline of Hinduism.

It feels good when we read about transformation felt by the author from his early history reading to now which motivated him to write and present another view on those topics. The author does not shy away from mentioning and quoting the atrocities done to Hindus/Indians by invaders. He has tried with proper proofs to clear the veil behind which leftist historians have hidden Islam and Sufism and made it look pious. He also gives details of the monetary loss and slaughter of Hindus by the hands of Invaders during the Islamic invasion of India.  

Our current history book does not mention many Indian brave hearts who fought valiantly to invaders, many of them till their death. The author’s attempt to present their stories to new readers is praiseworthy. 

During the discussion on the caste system, author looks a little confused in comparing it with the varna system mentioned in Vedas and Manusmriti. It feels like he is influenced by the current caste system narrative and its bad effects on overall society. He explains with much clarity the effects of the caste system during the medieval period and later during British rule and how it made Hindus of that time week and Hinduism suffer.  

Hindu way of life made the temples a centre of spiritual, educational, cultural, social, and economic awakening and growth. The wealth accumulated at temples attracted invaders too. The demography of India and the decentralized nature of the Hindu religion kept it surviving and even flourishing during the brutalities of Islamic rulers and even in British rule.

This book has tried to scan through ancient India and focuses on medieval history, clears many myths by presenting facts but the majority of references mentioned are secondary sources. In short, this book is introductory, covered a vast timeline, explained many topics which are not visible in current history books, an eye-opener for many, and a great read for layman reader.

Friday, March 19, 2021

कृष्णा वंदना

सुनो मेरे मोहन प्यारे

बिनती करुँ मैं, कर जोरी के.......

तुम वन-२ बंशी बजाते,

मैं भटकूँ चहुँ ओर रे....

सुनो मेरे मोहन प्यारे

बिनती करुँ मैं, कर जोरी के.......

माखन खाये, गइया चराये

मेरी इक ना स्वप्न सजाये

      हे मुरलीधर, बृज के कान्हॉ

      रखो मेरी लाज रे ...

सुनो मेरे मोहन प्यारे

बिनती करुँ मैं, कर जोरी के.......

      हरे-भरे जंगल हैं लेकिन, वृन्दावन की छाव नहीं है

      कलकल करती नदियाँ हैं पर, उनमें वो (यमुना सी) मिठास नहीं है

      दया करो हे जग के रखवाले

      सब कुछ कर दिया अब तुम्हरे हवाले

      दरश दिखावो, जादू चलाओ

      पूरी करो मेरी फरियाद रे......

सुनो मेरे मोहन प्यारे

बिनती करुँ मैं, कर जोरी के.......

      आज हुई है धन्य वसुंधरा,

      चरण तुम्हारे जो इस पर परे हैं,

      पुलकित हुआ है कोना-२, रोम-२ मुस्काने लगा है,

      सदा रहो कृपालु वो गिरधर, दृष्टी हमपे बनाई के...

सुनो मेरे मोहन प्यारे

बिनती करुँ मैं, कर जोरी के.......

 

 निरज कुमार सिंह

Thursday, March 18, 2021

दयानिधान

प्रातः काल उठते ही कर ले, नियत प्रभु का ध्यान ।

दुःख दर्द हर लेंगे सारे, देंगे प्राणों को त्राण ।

वो हैं दयानिधान ॥


करूणापती करूणा के सागर, धन से हैं भरते वो गागर ।

लोभ मोह का नाम मिटाकर, करते मोक्ष प्रदान ।

वो हैं दयानिधान ॥